बड़ा होगा भारत का भावी पेंशन समाज,

बड़ा होगा भारत का भावी पेंशन समाज, परंतु आज की कौन सुनेगा


मनोहर मनोज


किसी भी सरकार द्वारा आर्थिक क्षेत्र में उसके कार्यों के चार मुख्य पैमाने बनते हैं जिसमे पहला है स्वयं व निजी क्षेत्र की भागीदारी से भौतिक आधारभूत संरचना का विकास जिसमे सडक़, रेलवे, बिजली घर, संचार व सूचना नेटवर्क वगैरह की स्थापना। दूसरा है मानव विकास यानी सामाजिक आधारभूत संरचना जिसमे शिक्षा-स्वास्थ्य-सफाई की सर्वत्र उपलब्धता प्रदान करना। तीसरा है बहुविध राजकोषीय नीतियो व उपायों के जरिये विकास, रोजगार, राजस्व और उससे जनित संसाधनों का समुचित स्थानांतरण करना और चौथा है देश की सभी आबादी की अवस्था व उसकी पात्रता तथा जरूरत के मुताबिक उसके लिए संपूर्ण सामाजिक सुरक्षा का प्रावधान। कहना ना होगा हमारे देश की बहुसंख्यक आबादी के साथ उनकी सामाजिक सुरक्षा के मामलों में बिल्कुल भी न्याय नहीं होता। देश की संगठित श्रमशक्ति तो अरसे से देश में सामाजिक सुरक्षा के रूप में अपनी पेंशन सुविधाओं का भोग कर रही है परंतु देश की करीब ९० फीसदी आबादी इससे महरूम है और जीवन की तमाम अनिश्चिताओं से जूझ रही है। भारत में इससे बड़ी विडंबना और असमानता की पराकाष्ठा क्या हो सकती है कि देश की संगठित श्रमशक्ति हर माह नियमित रूप से एक एक लाख रूपये तक का पेंशन पाती है जबकि इसके बरक् श देश में करोड़ों वृद्धों व विकलांगों को पेंशन के मद में ५०० रुपये भी नियमित नही मिल पाता है। हां देश के कुछ राज्यों ने इस पांच सौ रुपये की पेंशन राशि को बढ़ाकर १५०० रुपये जरूर किया है। परंतु अब लगता है देश का यह दौर बदलने जा रहा है कम से कम भविष्य के लिए। क्योंकि देश के मजदूर, किसान और दूकानदारों की करीब पच्चीस करोड़ आबादी अपने भविष्य के लिए पेंशन सुविधाओं से जुडऩे जा रही हैं। हमें नरेन्द्र मोदी सरकार की यूनीवर्सल पेंशन योजना पर दर्शायी गई उस दूरदर्शी नवीनतम पहल की सराहना करनी पड़ेगी। गौरतलब है कि पहले टर्म में मोदी सरकार ने देश के कमजोर वर्ग के लिए पीएम जीवन बीमा, जीवन सुरक्षा और अटल पेंशन योजना के साथ आरोगय बीमा जैसी योजनाएं शुरू की थीं। परंतु अभी अपने दूसरे टर्म में मोदी सरकार ने समाज के तीन बड़े घटकों असंगठित मजदूर, किसान और छोटे दूकानदारों को सिलसिलेवार तरीके से पेंशन योजना में शामिल कर भारतीय समाज के वृहत्तर तबके को भविष्य के लिए पेंशन सोसाइटी में तब्दील करने जा रही है।


बताते चलें कि यूनीवर्सल सामाजिक सुरक्षा के तहत मोदी सरकार ने श्रमिकों, किसानों व दूकानदारों के लिए शुरू की गई इस पेंशन योजना में जो मानक तय किये गए है वह कमोबेश एक ही जैसे हैं। दूसरा इन पेंशन योजनाओं को राजखजाने पर बिना ज्यादा व अचानक भार दिये पेंशन कोष प्रबंधन के जरिये इन तीनों सामाजिक संवर्गों मजदूर, किसान व दूकानदार को साठ साल की उम्र के बाद तीन हजार रुपये पेंशन देने का प्रावधान है। इसमे पात्र की मृत्यु के उपरांत उसकी पत्नी को पेंशन देने का प्रावधान है। इन तीनों योजनाओं में बीस से चालीस साल तक के लोगों को पात्र बनाया है जिन्हें न्यूनतम ५५ रुपये और अधिकतम २०० रुपये हर माह अपने उम्रानुसार योगदान करना है और ठीक इतनी ही राशि सरकार योगदान करेगी। श्रमिक पेंशन योजना के तहत वे सभी अनौपचारिक व असंगठित मजदूर जिनके अधिकतम वेतन १५००० रुपये हैं, उन्हें इसका पात्र बनाया गया है । जबकि किसानों के मामले में दो हक्टेयर यानी पांच एकड तक के भू स्वामी किसानों जिसमे देश के करीब अस्सी फीसदी किसान आतें  हैं उन्हें इस किसान पेंशन योजना में शामिल किया गया है। दूकानदारों के मामले में वे कारोबारी व स्वरोजगारी जिनका सालाना टर्नओवर अधिकतम डेढ करोड़ है, उन्हें शामिल किया गया है। कहना ना होगा भारत यदि एक तरफ युवाओं का देश है तो दूसरी तरफ देश में वृद्धों की आबादी में भी औसत जीवन प्रत्याशा दर उंचे होने की वजह से अच्छी खासी बढोत्तरी हो रही है। देश की करीब साठ फीसदी आबादी पैतीस साल के नीचे हैं तो दूसरी तरफ देश में साठ साल से उपर बड़ी बीस करोड़ की आबादी निवास करती है। इस वर्ग को सामाजिक सुरक्षा के नेटवर्क से जोड़ा जाना एक बेहद जरूरी कदम है। फिलवक्त मोदी सरकार ने अगले दो साल के भीतर देश की करीब दस करोड़ श्रमिक, दस करोड़ किसान व करीब तीन करोड छोटे कारोबारी व दूकानदारों को इस पेंशन योजना से जोड़ देने का अपना लक्ष्य तय किया है। बल्कि इसी प्रंद्रह अगस्त तक देश के दो करोड़ किसानों को इस पेंशन योजना से जोडऩे का लक्ष्य तय किया गया है। योजना के मुताबिक देश में स्थित करीब तीन लाख सामान्य सेवा केन्द्रों पर इन पेंशन योजनाओं की अर्जी ली जाएगी जिसमे आधार कार्ड व बैंक खाता के आधार पर लाभार्थियों का चयन होगा। इन तीनों पेंशन योजनाओं में जो पात्र कर्मचारी भविष्य न्ििरध यानी इपीएफ, पीपीएफ यानी लोक भविष्य निधि और एनपीएस यानी राष्ट्रीय पेंशन योजना के साथ जुड़े हैं उन्हें इन योजनाओं से वंचित रखा गया है।


कुल मिलाकर मोदी सरकार ने बड़ी ही होशियारी से अपने राजकोष पर बिना ज्यादा बोझ डाले देश के एक बड़े तबके को अपनी यूनिवर्सल पेंशन स्कीम में शामिल करने का यह एक यथोचित कदम उठाया है। यह होशियारी वैसी ही है जिस तरह से बाजपेयी सरकार ने २००४ के बाद बहाल सभी सरकारी कर्मचारियों को पेंशन देनदारियों से वंचित कर उन्हें एनपीएस योजना के तहत कर्मचारी व सरकार की जमा भागीदारी रकम से जोड़ दिया था। परंतु सबसे बड़ा सवाल ये है वे सरकारी कर्मचारी जो २००४ से पहले के हैं उन्हें तो पेंशन पूर्व की भांति मिल रहा है और जो सेवा निवृत नहीं हुए हैं उन्हें भीे मिलेगा । परंतु देश की नब्बे फीसदी अनौपचारिक व असंगठित आबादी का अभी कौन रखवाला बनेगा? गौरतलब है कि इन संगठित तबके के वृद्धों के उनकी चलायमान पेंशन देनदारियों पर सरकार हर साल एक लाख करोड वहन कर रही है। देश के सेवा निवृत सरकारी कर्मचारी जिनकी आबादी देश की कुल आबादी का एक फीसदी और देश की कुल वृद्ध आबादी के पांच प्रतिशत से भी कम है उनके पेंशन पर खरची जाने वाली रकम देश के कुल गैर योजना व्यय का दस फीसदी है। जबकि देश की पिच्चानवे प्रतिशत वृद्ध आबादी पर गैर योजना व्यय का एक फीसदी भी खर्च नहीं हो रहा।? नयी पेंशन योजना तो बीस साल बाद वृद्ध होने वाले किसानों मजदूरों व दूकानदारों को तीन हजार रुपये पेंशन प्रदान करेगी और वह रकम मौजूदा मुद्रास्फीति की दर के हिसाब से उस समय अत्यल्प हो जाएगी। चलों उनके लिए लिए तो नहीं से थोड़ा भला वाली स्थिति बनेगी परंतु मौजूदा बीस करोड़ की वृद्ध आबादी के लिए अभी बिल्कुल नहीं की स्थिति है उसका ख्याल करने की कोई तरकीब तो मोदी सरकार निकाले तब बात पते की कही जाएगी।