चुनाव के वक्त ही असल में होता है राजनीतिक भ्रष्टाचार का बीजारोपण

  चुनाव के वक्त ही असल में होता है राजनीतिक भ्रष्टाचार का बीजारोपण

भारत की  लाइलाज समस्या भ्रष्टाचार का सर्वप्रमुख स्वरूप राजनीतिक भ्रष्टाचार है और यह भ्रष्टाचार चुनावों के मौसम में ही तो अपने सबसे बड़े उफान में होता है। यही वह वक्त होता है जब राजनीतिक दलों और चुनावी उम्मीदवारों द्वारा टिकट वितरण से लेकर चुनावी प्रचार तथा मतदाताओं को लुभाने से लेकर वोट के ठेकेदारों   पटाने के वास्ते तमाम भ्रष्ट हथकंडे अपनाये जाते हैं। माना जाता है कि देश के सर्वत्र कोनों में फैले भ्रष्टाचार का असल बीजारोपण इसी चुनावी मौसम के दौरान ही हो जाता है। लोकसभा चुनाव की तयशुदा खर्चसीमा 70 लाख है जो अपने आप में कोई छोटी राशि नहीं हैजिसे सफेद पैसे में  जुटाना आसान नहीं है परंतु इसके बाजवूद तमाम दल और उनके चुनावी उम्मीदवारों की चुनावी खर्च राशि इस निर्धारित सीमा से भी ज्यादा होती है जिसका चुनाव आयोग द्वारा जांची जाने वाली चुनावी खर्च रजिस्टर नहीं पता कर पाती। जाहिर है जो चुनावी उम्मीदवार चुनाव में जो धनराशि व्यय करता हैजनप्रतिनिधि बनने के बाद भ्रष्ट तरीके से उस धन की उगाही भी करता है। इसका दूसरा पक्ष यह है कि जो व्यक्ति या संस्था चुनावी उम्मीदवारों को चंदे देते हैं वे विजयी उम्मीदवारों से इस चंदे के बदले वैध अवैध फायदे की अपेक्षा भी रखती है और इसके उपरांत ही तो शुरू हो जाती है हमारी राजनीतिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार की एक अनवतर अंतर्निहित श्रृंखला। अभी हाल में मनोहर मनोज द्वारा भ्रष्टाचार पर लिखी गई एक विशद पुस्तक  क्रूसेड एगेन्स्ट करप्शन आन दी न्यूट्रल पाथ में भ्रष्टाचार पर जनप्रतिनिधियों का नजरिया अध्याय में इस तरह के कई चौकाने वाले खुलासे हुए हैं जो उनके सर्वेक्षण से मालूम हुए। पुस्तक के मुताबिक जनप्रतिनिधियों द्वारा पब्लिक के सामने भ्रष्टाचार को एक बड़े शत्रु के रूप में प्रस्तुत जरूर किया जाता है परंतु सच्चाई ये है कि उनके चुनाव  भ्रष्टाचार में चोली दामन का संबंध है जिसका वह दबे मूंह से  ही खुलासा कर पाए। भ्रष्टाचार को लेकर जनप्रतिनिधियों से कुल चौदह सवाल पूछे गए जिसमें उनकी प्रतिक्रिया आंकड़ों के लिहाज से काफी दिलचस्प थी। मिसाल के तौर पर जनप्रतिनिधियों से जब यह पूछा गया कि आपको चुनाव या अन्य मौकों पर जिस व्यक्ति या संस्थाओं ने चंदा या अन्य सहायता दीआपके मं़त्रीसांसद या विधायक बनने के बाद क्या कभी उनकी तरफ से  सही-गलत काम करने का आपने कभी दबाव महसूस किया तो इसके जबाब में 36 प्रतिशत ने कहा हां ऐसा हुआ जबकि 64 प्रतिशत ने इस तरह के किसी दबाब पडऩे से इनकार किया।

जनप्रतिनिधियों से अगला सवाल यह पूछा गया कि आपकी राय में भ्रष्टाचार उन्मूलन की शुरूआत कहां से होनी चाहिए तो इस पर 40 प्रतिशत जनप्रतिनिधियों ने कहा कि यह कार्य  राजनीति और चुनाव सुधार के जरिये होना चाहिए। इसके बाद 22.8 प्रतिशत लोगों ने कहा कि  भ्रष्टाचार विरोधीजांच एजेंसियों को ज्यादा स्वायत्त बनाकर यह कार्य किया जाना  चाहिए। तीसरे नंबर पर 16.6 प्रतिशत लोगों ने कहा कि भ्रष्टाचार को  टाडा-पोटा जैसे कानून मेंशामिल किया जाना चाहिए जबकि 14.2 प्रतिशत ने कहा कि देश में हर स्तर पर लोकायुक्त की नियुक्ति होनी चाहिए।

जनप्रतिनिधियों से जब यह पूछा गया कि आपकी राय में क्या सभी राजनीतिक दलों और चुनावी उम्मीदवारों को मिलने वाले चंदे को पारदर्शी बनाने के लिए  इसकी ऑडिट करायी जानी चाहिए तो इसके जबाब में 86.6 प्रतिशत लोगों ने कहा हां यह कराया जाना चाहिए जबकि 13.3 प्रतिशत  लोगों ने इस राय से अपनी सहमति नहीं जाहिर की। 

वरिष्ठ पत्रकार मनोहर मनोज द्वारा लिखित पुस्तक  क्रूसेड अगेंस्ट करप्शन ऑन दी न्यूट्रल पाथ के सर्वेक्षण अध्याय के अंतर्गत इस सर्वेक्षण संवर्ग में करीब 500 जनप्रतिनिधियों जिसमे सांसदविधायक  स्थानीय निकायों के जनप्रतिनिधियों का साक्षात्कार लिया गया जब जनप्रतिनिधियों से यह पूछा गया कि आपकी नजर में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार कहां है तो इसके जबाब में अधिकतर जनप्रतिनिधियों का मानना है की नौकरशाही   प्रशासन में  भ्रष्टाचार ज्यादा है।  दूसरे स्थान पर करीब 26.1 प्रतिशत लोगों ने राजनीति में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार होने की बात कही। तीसरे नंबर पर 16.6 प्रतिशत ने बिजनेस में तथा 11.9 प्रतिशत लोगों ने पेशेवरों में सबसे ज्यादा भ्रष्टाचार होने की बात कही।

जब उनसे यह पूछा गया कि क्या आप मानते हैं कि देश भर में राजनीतिज्ञों अफसरों उद्यो्गपतियों और अपराधियों के बीच आपस में एक ऐसा नापाक रिश्ता  है जिसके तहत दोनो एक दूसरे के लिए हित साधते हैं और इसमे जनता ठगी जाती है तो इस बात पर 69 प्रतिशत सवेँक्षू जनप्रतिनिधियों ने अपनी सहमति जताई जबकि 31 प्रतिशत लोगों ने इससे अपनी सहमति नहीं जाहिर की।

जनप्रतिनिधियों से यह पूछा गया कि यदि कोई जनता आपके पास भ्रष्टाचार की शिकायत लेकर आती तो उसमें आपकी  सक्रियता किस रूप में ज्यादा दिखती है। इस प्रश्न पर  सबसे ज्यादा 50 प्रतिशत जनप्रतिनिधियों ने कहा कि वे इस मामले को संसद और विधानभवन में उठाते हैं।  इसके बाद 17.8 प्रतिशत ने कहा कि वह फील्ड में जाकर जनता को भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी से निजात दिलाते हैं, 17.7 प्रतिशत जनप्रतिनिधियों ने कहा कि वह इस मामले में जांच एजेंसियों को सूचना देते हैं जबकि 14.2 प्रतिशत जनप्रतिनिधियों ने कहा कि वह इस मामले में संबंधित अधिकारी को फटकार लगाते हैं। जनप्रतिनिधियों से जब यह पूछा गया कि आप किन वजहों से भ्रष्टाचार को देश की सबसे बडी समस्या मानते हैं तो इसके जबाब में  38.2 प्रतिशत लोगों ने कहा कि क्योंकि यह विकास विरोधी है, 17.6 प्रतिशत लोगों ने कहा कि इसमे मजबूत और मजबुत कमजोर और कमजोर होते हैं। इसकेबाद 14.7 प्रतिशत ने कहा कि यह समाज मेें वैमनस्य पैदा करता है। इसके बाद 14.6 प्रतिशत लोगों ने कहा कि इससे उत्पादकता का हळास होता है और अंत में14.5 प्रतिशत लोगों ने माना कि इससे लोकतांत्रिक भावना कमजोर पड जाती है। जनप्रतिनिधियों से यह पूछा गया कि क्या  आप भारत की विद्यमान प्रशानिकसंरचना जिसमे हर जिले में कलक्टर ही सर्वेसर्वा होता है  प्रणाली जो कि ब्रिटिश शासन काल से चली  रही हैक्या उसमे बदलाव लाने के पक्ष मे हैं तो इस परसर्वाधिक 70 प्रतिशत जनप्रतिनिधियों ने इसके पक्ष में सहमति जाहिर की और सिर्फ 30 प्रतिशत  ने इस राय से अपनी असहमति जाहिर की।

जनप्रतिनिधियों से यह पूछा गया कि इस व्यवस्था में यदि बदलाव लाना चाहते हैं तो आपकी नजर में इसकी सबसे बेहतर वैकल्पिक व्यवस्था क्या है। इस प्रश्र के जबाब में 72.7 प्रतिशत लोगों ने कहा कि इसके लिए जनप्रतिनिधियों को प्रशासनिक मामलों में सीधे हिस्सेदारी दी जाए। 13.6 प्रतिशत लोगों ने कहा कि पंचायतीशासन प्रणाली को और मजबूत बनाया जाए, 9 प्रतिशत ने कहा कि तकनीकी अधिकारियों को ज्यादा प्रशासनिक अधिकार दिया जाए जबकि 4 प्रतिशत ने कहा किकोई और वैकल्पिक व्यवस्था लायी जाए।

जनप्रतिनिधियों से यह पूछा गया कि ऐसा कहा जाता है कि जनप्रतिनिधियों दवारा पेट्रोलपंपगैस , र्टिलाइजर एजेंसी के आबंटन  अन्य सिफारिशों के जरियेभ्रष्टाचार  पक्षपात को बढ़ावा दिया जाता है तो क्या आप इसे समाप्त किये जाने के पक्षधर हैंइस प्रश्र पर 73.3 प्रतिशत ने कहा कि हां ऐसा किया जा सकता हैजबकि 26.6 प्रतिशत ने इससे अपनी अहमति जाहिर की।

जनप्रतिनिधियों से जब यह कहा गया कि क्या इससे आप सहमत हैें अलग से सांसद  विकास निधि या विधायक निधि का प्रावधान क्या एक तरह से उनके कमाने-खाने का  एक प्रावधान नहीं बन गया है,  तो 52.3 प्रतिशत ने इसके जबाब में इस बात पर हां कहा जबकि 47.7 प्रतिशत लोगों ने इस मत को  अस्वीकारकिया।  जनप्रतिनिधियों से यह पूछा गया कि क्या आप चाहते हैं कि उपरोक्त कार्यक्रम के बदले सभी क्षेत्रीय विकास कार्यक्रमो के  क्रियान्वन में आपलोगों को  सीधी भागीदारीअधिकार  जिम्मेदारी दी जाए तो इसके जबाब में 70.5 प्रतिशत लोगों ने इस बात से अपनी सहमति जाहिर की जबकि 29.4 प्रतिशतलोगों की राय इससे भिन्न थी।  जनप्रतिनिधियों से यह पूछा गया कि क्या आप मानते है कि अधिकारियों की प्रोन्नति या स्थानान्तरण का काम उनके काम यायोग्यता के आधार पर नहींराजनीतिज्ञ  बड़े अधिकारियों की व्यक्तिगत पसंद नापसंद के आधार पर  किया  जाता  है तो इसके जबाब में 52.9 प्रतिशत ने  स्वीकार किया और जबाब में हां कही जबकि  47.1 प्रतिशत ने इस पर नहीं कहा 

जनप्रतिनिधियों से जब यह पूछा गया कि  चुनाव के वक्त आपके क्षेत्र में लोग आपके किस काम को सबसे ज्यादा महत्व देते हैं तो इसके जबाब में सर्वाधिक 27प्रतिशत ने इसमें आपकी अपनी छवि और इमानदारी को इसका मुख्य कारक बताया जबकि 24.3 प्रतिशत ने  उनके द्वारा किये गए सार्वजनिक विकास कार्य को, 16.22 प्रतिशत ने लोगों की व्यक्तिगत सिफ रिशों की सुनवाई को, 16.2 प्रतिशत ने भ्रष्टाचार के खिलाफ  उनकी  मुहिम को तथा 16.1 प्रतिशत ने  राजनीतिक दलकी लहर को मुख्य कारक माना। अंत में सर्वेक्षण के दौरान इनसे यह पूछा गया कि भ्रष्टाचार-निरोधक कानून के तहत क्या आप जन-प्रतिनिधियों को जनसेवकमाने जाने से सहमत हैं तो इसके जबाब में 62.5 प्रतिशत ने हां और 37.5 प्रतिशत ने इस पर नहीं कहा।