बैंकों का विलयन: बैंककर्मियों का अवमूल्यन तो नहीं

बैंकों का विलयन: बैंककर्मियों का अवमूल्यन तो नहीं
मनोहर मनोज
चाहे राजनीतिक फलक पर हो या चाहे आर्थिक फलक पर हो, नरेन्द्र मोदी नीत एनडीए सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में बड़े हीं बोल्ड फैसले लिये जा रही है। कश्मीर, एनआरसी, चिदंबरम व कुछ अन्य दागी कांग्रेसी नेताओं की गिरफ्तारी जैसे राजनीतिक फैसलों के बाद आर्थिक मंच पर इस सरकार ने कुछ दिन पहले एक बड़ा आर्थिक फैसला लिया। यह फैसला था सार्वजनिक क्षेत्र के १० व्यावसायिक बैंकों को आपसी विलयन के जरिये घटाकर महज चार बैंकों में तब्दील करना। इस महा फैसले के बाद देश के सार्वजनिक क्षेत्र के करीब २७ बैंकिंग संगठन अब घटकर महज १२ रह गए हैं। सबसे पहले करीब दो वर्ष पूर्व देश के सबसे बड़े बैंक भारतीय स्टेट बैंक में इसके पांच सहयोगी बैंकों के विलयन को अंजाम दिया गया। इसके बाद करीब ४ माह पूर्व बैंक आफ बड़ौदा के साथ डेना व बिजया बैंक का विलय किया गया। और अब नवीनतम विलयन फैसले के तहत चार बैंकों में करीब छह बैंकों के विलय का जो फैसला लिया गया है। इस नये फैसले में पहला पंजाब नेशनल बैंक के साथ ओबीसी बैंक और यूनाइटेड बैंक का विलय किया गया है। दूसरा केनरा बैंक के साथ सिंडिकेट बैंक का, तीसरा इंडियन बैंक के साथ इलाहाबाद बैंक का और चौथा यूनियन बैंक आफ इंडिया के साथ कारपोरेशन बैंक व आंध्रा बैंक के विलय का फैसला लिया गया है। यानी यह घटना बताती है ठीक ५० साल पूर्व जिस देश नेदेश के १४ बड़े बैंकों के राष्ट्रीयकरण का फैसला लिया था, आज वह देश उन बैंकों के संयुक्तीकरण का फैसला ले रहा है। अब सवाल ये है कि नरेन्द्र मोदी सरकार के ये बोल्ड राजनीतिक आर्थिक फैसले हमारे शासन व अर्थव्यवस्था पर दूरगामी असर डालेंगे या ये बोल्ड फैसले पालीटिकल और इकोनामिक एडवेंचरिज्म की महज एक करतूत बन कर तो नहीं रह जाएंगे।
बात अपनी अर्थव्यवस्था की करें तो नोटबंदी व जीएसीटी की अपूर्ण व लचर व्यवस्था से चोट खायी यह अर्थव्यवस्था अभी कुछ ज्यादा ही संकटों से ग्रस्त चल रही है। विकास दर, रोजगार, आमदनी व मांग तथा अब सेन्सेक्स में गिरावट की शिकार इस अर्थव्यवस्था का वैसे तो बैंक ों के विलयन से कोई प्रत्यक्ष नाता नहीं है। परंतु कितना भी कर ले अभी इन १० बैैंकों के अपनी विलयन प्रक्रिया से इनके रोज रोज के बैंकिंग आपरेशन अभी कई महीनों तक अवश्य प्रभावित होंगे। इनके उपभोक्ताओं को कई तरह की परेशानियों से दो चार तो होना पड़ेगा। परंतु अभी जो सबसे बड़ा सवाल उभर कर  सामने आया है वह यह कि इन बैंकों के करीब दस लाख कर्मचारी जो इन विलयन फैसलों में अपना अवमूल्यन देख रहे हैं। गौरतलब है कि इन विलयन फैसलों पर बैंक कर्मियों के संगठन यूनाइटेड फोरम आफ बैंक इम्पलायीज यूनियन यूएफबीयू ने पिछले शनिवार को अपना कड़ा विरोध प्रदर्शित किया। गौरतलब है कि यूएफबीयू में करीब चार बैंक अधिकारी यूनियन व चार गैर अधिकारी बैंक यूनियन शामिल हैं। बैंक यूनियनों के इस समूह फोरम का मानना है कि विलयन फैसलों से देश भर में एनपीए वसूली की चल रही मुहिम को काफी धक्का पहुंचेगा। क्योंकि सारा ध्यान तो अब विलयन की तैयारियों पर चला जाएगा, जिसकी वजह से बैंकों का फोकस वसूली पर से घट जाएगा। फोरम का यह भी कहना है कि विलय किये जाने वाले सभी बैंक दरअसल मुनाफे में चल रहे थे और एनपीए घाटे की प्रोविजिनिंग कर अपने लक्ष्य में तत्त्परता से जुटे थे। दूसरा यह कि इन विलय की जाने वाली बैंकों की बरसों से अरजी गई निजी साख अब मिट्टी में मिल जाएगी। दूसरी तरफ सरकार का पक्ष देखें तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और उनके नौकरशाहों के दल ने जिस दिन विलयन का फैसला लिया, उस दिन अपनी मीडिया वार्ता के दौरान इस बात का पुरजोर आश्वासन दिया था कि नयी प्रक्रिया में बैंक कर्मचारियों की कोई छंटनी नहीं होगी। वित्त सचिव राजीव कुमार ने यहां तक कहा कि विलयन फैसलों के तहत कई बंैककर्मियों को ट्रांसफर व पोस्टिंग के नये बेहतर अवसर प्राप्त होने जा रहे हैं। उनकी सेवा शर्ते और बेहतर होने जा रही है। गौरतलब है कि मरहूम वित्त वित्त मंत्री अरुण जेतली ने ५५ हजार करोड रुपये की लागत पर बैंकों में नये पूंजी निवेश की योजना बनायी थी। नयी घोषणा के तहत अब उस निर्धारित राशि को अन्य बैंकों के अलावा इन सभी चार संलयित बैंकों के पूंजी निवेश पर भी खरचा जाएगा। जाहिर है इस राशि का उपयोग इन विलय की जाने वाली बैंकों की सुविधाओं के लिए होगा।
परंतु वित्त मंत्रालय द्वारा बैंकों के इस महाविलयन का लिया गया यह फैसला इतना जल्दी मूर्त रूप लेगा, इस पर अभी संदेह है। इसे लेकर कई सारी व्यावहारिक कठिनाइयां भी आने वाली हैं। मिसाल के तौर पर पीएनबी के खाताधारकों के खाता नंबर व आईएफएससी कोड तो अरिवर्तित रहेंगे परंतु इसमें मर्ज होने वाले ओबीसी बैंक के खाताधारक का खाता नंबर और आईएफएससी कोड तो नये सिरे से बनाने ही पड़ेंगे। इस तरह छहों बैंक जो चार बड़े बैंकों में विलय हो रहे हैं उनके सभी खाताधारकों के लिए ये स्थितियां उत्पन्न होंगी। इन सभी के चेक व पासबुक के डिटेल नये सिरे से निर्धारित करने पड़ेंगे। बैंकिग सूचना प्रौद्योगिकी विशेषज्ञों के मुताबिक विलयित बैंकों के फायनेंसिंग सूचना प्रौद्योगिकी साफ्टवेयर को समरूप बनाना भी एक बड़ी चुनौती होगी। बताते चलें कि कुछ बैंकों में इन्फोसीज की कोर बैंकिंग साफटवेयर फिनाकल और कुछ में टीसीएस के साफटवेयर बैन्क्स प्रयुक्त होते हैं। इन्हें समरूप बनाना होगा। विलयित बैंकों के वेबसाइट व मोबाइल एप्स को एकरूप बनाना कई तकनीकी चुनौतियों से भरा होगा, जिसमे अनुमान है कम से कम दो साल का समय लगेगा। हालंाकि वित्त मंत्रालय का कहना है कि उन्होंने अभी अभी जिस तरह से बैंक आफ बड़ौदा के विलय का सफलता पूर्वक संचालन किया है उससे उनके  व्यावसायिक कारोबार पर सकारात्मक असर दिखा है। ऐसी ही परिस्थितियां चार नये विलयित बैंक के साथ भी उत्पन्न होने वाली है।
बताते चलें इस फैसले के पीछे की असल बात ये है कि नरेन्द्र मोदी सरकार की अधिकतर योजनाएं चाहे जनधन हो, जन सुरक्षा हो, मुद्रा बैंकिंग योजना हो, स्टार्ट अप व स्टैंडअप हो ये सभी बैंकों पर पूरी तरह से आश्रित रहने वाली योजनाएं है। इन योजनाओं के संचालन व लक्ष्य हासिल करने की होड़ में मोदी सरकार ने अपने पहले कार्यकाल के शुरूआती साल में इन बैंकों का जमकर दोहन किया । इस वजह से २०१४ से २०१६ तक कई बैंकों के मुताफे में लगातार गिरावट दर्ज हुई। इसके बाद नोटबंदी के फैसले तथा एक एक कर एनपीए घोटालों की खुलती परत दर परत परिस्थितियों से देश की बैंकिंग व्यवस्था की मौजूदा स्थितियां काफी गमगीन नजर आ रही थीं। ऐसे में सरकार के पास अपनी बैंकिंग व्यवस्था को दूरूस्त करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था जिसके लिए मोदी सरकार की यही योजना आगे आई कि कमजोर बैंकों को मजबूत बैंकों कें साथ जोडक़र उन्हेें डूबने से बचाया जाए और उस पर ५५ हजार करोड़ का नया पूंजीगत निवेश कर उसे एक नया जीवनदार दिया जाए। बहरहाल सरकार ने तो इस फैसले को अंजाम दे दिया है पर आने वाले समय में बैंककर्मी इस फैसले के साथ कितनी मुश्तैदी से खड़े होते हैं, यह आने वाला वक्त बताएगा।