भ्रष्टाचार पर यह एक रासलीला

भ्रष्टाचार पर यह एक रासलीला हो रही है


मनोहर मनोज


भारत में भ्रष्टाचार पर दो बातें बड़ी प्रमुखता से अवधरित होती दिखायी देती है। पहला यह कि जिनका नाम भ्रष्टाचार में उछल गया वह सबसे बड़ा चोर, जिसका नाम दुबका पड़ा है वह है साधु। दूसरे शब्दों में कहे भ्रष्टाचारियों के गिरोह में जिसके सितारे गर्दिश में हो तो वह पकड़ा जाता है और जिसका समय बुलंद हो तो उसका कारनामा छिपा रहता है। तीसरी अवधारणा ये दिखायी देती है कि सभी बेईमानों को एक साथ सजा नहीं मिलती और सभी ईमानदारों को एक साथ उसका इनाम नहीं मिलता। चौथी अवधारणा ये दिखती है कि हमे मौलिक अवस्था पर हमला नहीं बोलना है, हमे तो चुनिंदा व्यक्तियों पर हमला बोलना है आखिर इसके जरिये हमे विरोधियों पर स्कोर करने में तो मदद मिलेगी। भारत में भ्रष्टाचार पर होने वाली राजनीति कभी भी मौलिक सुधारों की तरफ नहीं गई। इसमे बलि का कोई बकरा बनता है या फिर राजनीतिक बदले की उदात्त भावना का परचम लहराया जाता है। अधिकतर तौर पर भ्रष्टाचार पर होने वाली प्रतियोगी बहुदलीय राजनीति अलग अलग समय में अलग अलग व्यक्तियों को ट्रैप करने का माध्यम बनी है।


इस समाज में कोई भी व्यक्ति नहीं है जिसे अनैतिकता, अनियमितता, भ्रष्टाचार का कुछ ना कुछ मामला तैयार ना किया जा सकते। यहां तक कि महामानव गांधी के खिलाफ भी ऐसी फाइल बनाई जाए तो उसके लिए मसाला ढ़ूंढ लिया जाएगा। परंतु हमे एक तो इसकी एक सीमा रेखा तय करनी पडेगी। मौजूदा व्यवस्था में कौन सी दल या सरकार ऐसी नहीं रही है जो सत्ता में आने पर अपने राजनीतिक सहयोगियों, समर्थकों और शुभेच्छुओं को आर्थिक व राजनीतिक फायदा पहुंचाने के दबाव से मुक्त रहती है। मतलब ये है हमे कुछ सार्वजनिक जीवन में उपस्थित सभी व्यक्तियों के लिए  एक विराट मानदंड बनाना होगा। सत्तारूढ सरकारें अपने अमले का दूरूपयोग की जाती है।


सवाल ये है कि भारत में संरचनात्मक स्तर पर होने वाले अनगिनत भ्रष्टाचार जो रोज रोज की सुर्खियां नहीं बनती है, उसे छोड़े जो हाई प्रोफाइल भ्रष्टाचार है उन सभी का क्या हुआ? कोल ब्लाक, टू जी, राष्ट्रमंडल खेल घोटाला पर मौजूदा स्थिति क्या है। देश के सत्तर साल में राजनीतिक स्तर पर सर्वाधिक चर्चित बोफोर्स और टूजी अपने अंजाम पर क्यों नहीं जा सकी। ऐसा नहीं कि इन महाघौटालो के आरोप मनगढंत थे।


भारत में भ्रष्टाचार की मौजूदा अवधारणा ये कहती है कि आपकी संपत्ति चाहे कितने अरबों की हो, आपका विलासिता का स्तर कितना उंचा क्यों ना हो, परंतु आप अपने रसूख का इस्त्ेामाल करते  है और यदि आपके करतूत के पर्दाफाश नहीं होता, उसकी कोई सुध नहीं लेता, पर जैसे गाहे बगाहे वह लीक हो गया तभी उस पर चर्चा या कार्रवाई का पात्र माना जाता है। इस पर जबाब ये दिया जाता है कि उन पर अभी तक कोई आरोप नहीं लगा। भई सार्वजनिक जीवन में आसीन सभी लोगों के एक एक कारनामे की तस्दीक और उसकी रिपोर्टिंग अनिवार्य रूप से की जाती है क्या। आम तौर पर भारत में भ्रष्टाचार का संज्ञान तब होता है जब प्रतिद्वंधी भ्रष्ट अपना हिस्सा नहीं मिलने से या इस लोकतंत्र के बहुदलीय अंगों को संतुष्ट नहीं किया गया या सामूहिक निर्णय लेनी वाली नौकरशाही के सभी टेबली उस भ्रष्टाचार के हिस्सेदार नहीं बनते है तो उस सूरत में कई भ्रष्ट कारनामे उजागर होते है। राजनीतिक स्तर पर बदले की भावना से अपने अमले का प्रयोग कर किसी व्यक्ति के खिलाफ चार्जशीट बनायी जाती है।


भारत का सिस्टम फुल प्रूफ नहीं है। तकनीक का अद्यतन इस्तेमाल नहीं होता है। नीतिगत स्पष्टता, नियमावली की सरलता, निर्णय की तत्परता, नीयत में इमानदारी का अभाव होता है, जनजागरूकता गौण होती है, भ्रष्टाचार विरोधी कानून अधिकारियों को बचाव तथा लाभार्थी के फंसाव पर टिकी होती है। ऐसे में देश के सार्वजनिक जीवन में रहने वाले जिसमे राजनीतिज्ञ, बडे राजनीतिक दलों के आफिस बियरर, नौकरशाह, कारपोरेट, कांट्रेक्टर, की एक ऐसी सूची क्यों नहीं बनायी जाती जो एक नेशनल एकाउंटेबिलिटी ब्यूरो की तरह इन सभी के आमदनी व खर्चे के सभी श्रोतों का स्वचालित तरीके से सारा ब्योरा रखे। हमारे यहां लाखों लोग है जिनकी आमदनी बेहिसाब या अनुपात से ज्यादा है, परंतु सरकारें किनको डिस्प्रोपोरशनेट एसेट कानून में बूक करती है जो उनके राजनीतिक विरोधी है। क्यों नहीं हमारा सिस्टम एक साथ सभी बेइमानों पर एक साथ हमला बोलता है। क्या वजह है कि जो सत्ता में होता है जब उन्हें भ्रष्टाचार करने का नायाब सुअवसर प्राप्त होता है तब उनके भ्रष्टाचार का खुलासा नहीं होता है। यदि कुछेक मामलों में हो भी जाता है तो उनके पास वारा न्यारा करने का अवसर मिलता है। यानी भ्रष्टाचार करों परंतु तुम्हारा भ्रष्टाचार का पर्दाफाश नहीं होना चाहिए, इसके लिए हर तरह का प्रबंधन करो।


कौन ऐसी पार्टी है जो अपने चुनाव में कालेधन का इस्तेमाल नहीं कर रही है। कौन ऐसा बडा राजनेता है जो सादगी की मिसाल हो। चिदंबरम दस साल से उपर वित्त मंत्री रहे उन्हें मौजूदा व्यवस्था में जाने अनजाने अनियमित्ता बरतने का अवसर मिला, उन पर आरोप सही भी होंगे परंतु बाकी लोग क्या सादगी और ईमानदारी की मिसाल है क्या। मोदी सरकार भ्रष्टाचार के मामले में चिदंबरम को पकड़ा ठीक किया पर इसके साथ लाखो घोटालाबाजों को जो इनके दल में है और और दल में भी है उन्हें भी बूक करती है तब देश में भ्रष्टाचार विरोध का मामला देश को फायदा देने वाला होता। बेनामी संपत्ति के मामले में कमलनाथ के भतीजे को पकड़ा, ठीक है परंतु इसके साथ लाखों बेनामी संपत्ति धारकों को भी बूक करती। लगता है कि मोदी सरकार ने अपना नैरेटिव यह गढा है कि वह चुनाव के ९० प्रतिशत चुनावी बौड प्राप्त कर, देश भर में भाजपा के पांच सितारा कार्यालय निर्मित कर, धनी राजनीतिज्ञों से सुसज्जित पार्टी होकर भी वह ईमानदार है और विपक्ष की पार्टिया घोटालेबाज और उनके नेता बेनामी संपत्ति होल्डर हंै। फिर कभी खुदा ना खास्ता विपक्षी दल सत्ता में आ गए तो फिर आपके दलों के नेताओं की फाइले एक एक कर खुलने लगेगी। मौजूदा व्यवस्था ऐसी है जिसके फूल प्रूफ बिना बनाये भ्रष्टाचार की गुंजाइश हमेशा रहेगी। मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार को लेकर कुछ अच्छे कानून बनाये व कुछ प्रौद्योगिकीगत अच्छी पहल की है परंतु कुल मिलाकर मोदी सरकार भ्रष्टाचार को लेकर सारे हमले केवल व केवल राजनीतिक बदले की उदात्त भावना और उससे बेजा राजनीतिक फायदे को ध्यान में रखकर किया गया है। इससे देश में भ्रष्टाचार व कालेधन से मुक्त व्यवस्था का कोई गौरवशाली अध्याय शुरू हुआ है ऐसा बिल्कुल भी नहीं माना जा सकता। आज भाजपा की स्थिति ये है कि विपक्ष का कोई नेता चाहे वह कितना भी बडा घोटालाबाज हो वह यदि पार्टी में शामिल हो जाता है तो उसके सारे खून माफ। आखिर राज ठाकरे की अनियमितता अभी ही क्यों दिख रही है। भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी डेन माने जाने वाली नौकरशाही पर अब दूसरे टर्म में जाकर नकेल कसी जा रही है जो अभी भी प्रतीकात्मक है ना की कोई व्यापक संरचनात्मक पहल।


लेखक नियमित कालमकार के साथ सुप्रसिद्ध पुस्तक ए क्रूसेड एगैन्स्ट करप्शन के लेखक हैं