सब्सिडी घटी नहीं बल्कि तेजी से बढ़ी है

सब्सिडी घटी नहीं बल्कि तेजी से बढ़ी है


मनोहर मनोज


नरेन्द्र मोदी सरकार के बारे में ऐसा आभास होता था कि यह सरकार एक तरह से सभी सब्सिडी या तो समाप्त करती जा रही या फिर उन्हें तेजी से घटाते जा रही है। परंतु इस बार वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश बजट में सब्सिडी पर खरचे जानी वाली रकम का जो ब्यौरा आया है उसमे तो सब्सिडी व्यय पर अच्छी खासी बढोत्तरी दर्ज हुई है। मौजूदा वित्त वर्ष यानी २०१९-२० में प्रावधानित सब्सिडी रकम पिछले साल के वास्तविक खर्चे से १३ फीसदी ज्यादा है। पिछले वित्त साल २०१८-१९ में सब्सिडी पर 2.99 लाख करोड़ रुपये असल खर्च हुआ जिसे मौजूदा वित्त वर्ष २०१९-२० में 40 हजार करोड़ और बढाकर 3.39 लाख करोड़ रुपये किया गया है। जाहिर है कि मोदी सरकार पर भी विभिन्न तरह के सब्सिडी पर खर्चे बढाये जाने का अभी पुरजोर दबाव है। बताते चलें  कि भारत में सब्सिडी में तीन एफ फ ूड, फर्टिलाइजर और फ्यूल यानी अनाज, उर्वरक और ईंधन का प्रमुख योगदान होता है। इसके अलावा अन्य सब्सिडी के तहत निर्यात सब्सिडी व मूल्य समर्थन तथा सरकारी स्कीमों की सब्सिडी की राशियां शामिल होती हैं।


गौरतलब है कि सब्सिडी में सबसे बड़ी हिस्सेदारी फूड यानी अनाज सब्सिडी की होती है। वर्ष २०१३ में यूपीए सरकार ने जब देश की करीब ८० करोड आबादी को दो रुपये गेहूं और तीन रुपये किलो चावल के हिसाब से प्रति सदस्य पांच किलो देने का खाद्य सुरक्षा विधेयक लाया तो उस समय की विपक्षी और आज की सत्ताधारी एनडीए ने उस विधेयक का यह कहकर विरोध किया था कि इस विधेयक से देश में भ्रष्टाचार को बढावा मिलेगा। गौरतलब है कि वही एनडीए सरकार पिछले दो साल के भीतर इस अनाज सब्सिडी की रकम में करीब ८४ फीसदी की बढोत्तरी कर चुकी है। साल २०१७-१८ में अनाज सब्सिडी पर वास्तविक खर्च 1 लाख करोड़ रुपये हुआ और वह रकम इस बार वर्ष २०१९-२० के बजट में बढकर 1.८४ लाख करोड़ हो चुका है। जाहिर है देश में जनवितरण प्रणाली के समूचे तंत्र में चलने वाले इतने सारे भ्रष्टाचार, भंडारण व परिवहन की क्षति तथा सफेद हाथी सरीखी एफसीआई की तमाम करतूते भी सरकारों को इस खर्चे को कम करना तो दूर इसमे और बढ़ोत्तरी से अपने को रोक नहीं पायी हैं। जाहिर है देश की बहुसंख्यक आबादी को सस्ते राशन उपलब्ध कराना इस देश में राजनीतिक दृष्टि से कितना महत्वपूर्ण है?


 मोटे तौर केन्द्र सरकार द्वारा शत प्रतिशत वहन की जाने वाली यह अनाज सब्सिडी राज्य सरकारों द्वारा हीं उपयोग की जाती है। पिछले सालों में देश में खाद्य आपूर्ति के क्षेत्र में कई सुधारों मसलन सस्ते अनाज के बजाए नकद राशि दिये जाने का विकल्प, पीडीएस डीलरों के कमीशन राशि में बढ़ोत्तरी, पीडीएस अनाज की बिक्र ी पीओएस मशीनों से किये जाने की अनिवार्यता तथा अनाज भंडारण क्षमता में वृद्धि तथा फर्जी राशन कार्ड की भारी पैमाने पर रद्दगी के बावजूद इस सब्सिडी में बढोत्तरी हैरतनाक है। अनाज पर सब्सिडी दी जाए या भोजन भत्ता दिये जाएं जिससे निर्धन व्यक्ति हर तरह के पौष्टिक पदार्थ बाजार में क्रय कर सके, यह एक बड़ा प्रश्र है। क्योंकि अनाज पोषाहार सुरक्षा नही हैं। अनाज पर भारी सब्सिडी का दुरूपयोग होता है क्योंकि इसके क्रय, भंडारण, परिवहन, वितरण तमाम सुधारोंं के बावजूद भ्रष्टाचार मुक्त नहीं हो पाए हैं और देश के कई घोटाले इसी महकमे से जुड़े रहे हैं। तीसरा खाद्य सब्सिडी देश के पंद्रह करोड़ किसानों के अनाज का बेहतर बाजार मूल्य दिलाने में भी सबसे बड़ा रुकावट है। देश में पीडीएस प्रणाली की आपदा काल में, दूरदराज इलाकों में तथा फसल सीजन में अनाजों के मूल्य में गिरावट और आफ सीजन में अनाज मूल्य बढोत्तरी को रोकने में एक बड़ी भूमिका है। परंतु फिलहाल मोदी सरकार इस अनाज सब्सिडी के प्रबंधन के मामले में पिछली सरकारों से कोई अलग दृष्टि नहीं दे पायी है, जिसका नतीजा है कि देश की कुल सब्सिडी में अनाज सब्सिडी की हिस्सेदारी आधे से अधिक है।


सब्सिडी का दूसरा प्रमुख मद उर्वरक है जिसे भारत की १९६० के दशक से चलायी जा रही खेती के लागतों पर दी जाने सब्सिडी नीति का प्रमुख अवयव माना जाता है। गौरतलब है कि देश में अरसे से यह विमर्श चलता रहा कि किसानों के नाम पर दी जाने वाली इस सब्सिडी का असल फायदा देश का उर्वरक उद्योग क्यों हड़प ले जाता है। उर्वरक सब्सिडी का वितरण कैसे किया जाए इस पर कई कमेटियां भी बनायी गईं। पर इसके बावजूद इस सब्सिडी के तहत पिछले वित्त वर्ष २०१८-१९ में खरचे गए असल रकम ७० हजार करोड़ को बढ़ाकर ८० हजार करोड़ कर दिया गया है। हालांकि मोदी सरकार के उर्वरक व रसायन मंत्री सदानंद गौड़ा ने हाल ही में उर्वरकों की सब्सिडी को डीबीटी यानी किसानों के खाते में सीधे भेजने की योजना का शुभारंभ कर दिया है। माना जा रहा है कि इस पहल से किसान इस रकम को बचाएंगे और इससे उर्वरकों के उपयोग से अनाज पर होने दुष्प्रभाव में कमी आएगी।


तीसरी प्रमुख सब्सिडी फूयल सब्सिडी है जो अरसे से भारत सरकार के इस आयातित मद का एक बड़ा राजकोषीय बोझ बनता आया है। परंतु  पेट्रोल व डीजल पर सब्सिडी रिजीम की पूरी तरह समाप्ति तथा एलपीजी को लेकर शुरू की गई गिव अप स्कीम से बचायी गई सब्सिडी की रकम उज्ज्वला योजना पर खरचने के बाद यह माना जा रहा था कि भारत सरकार पर इस अनुत्पादक व्यय का बोझ कम होगा। परंतु नये बजट  प्रावधानों के मुताबिक मौजूदा वित्त वर्ष में फूयल सब्सिडी की रकम भी गत साल के असल खर्च २५ हजार करोड रुपये से करीब ५० प्रतिशत बढाकर ३७ हजार करोड़ रुपये कर दिया गया है। इस रकम में ३२ हजार करोड़ अकेले एलपीजी पर तथा ४५०० करोड़ किरोसिन पर है। जाहिर है कि मोदी सरकार की गेमचेंजर उज्जवला योजना जिसमे देश में करीब सात करोड़ गैस स्टोव के जो नये कनेक्शन दिये गए उनके एलपीजी सिलेंडर पर वहन की जाने वाली सब्सिडी का भार बढा है। खुशी की बात है कि गांवों में रोशनी के लिए प्रयुक्त होने वाला किरोसिन सब्सिडी अब घटता जा रहा है।


अन्य सब्सिडी के मदों में इस साल खर्च की जाने वाली रकम एक तरह से स्थिर है। कुल मिलाकर सब्सिडी जो हमारे जीडीपी का करीब ढाई फीसदी है वह देश में गैर योजना या राजस्व खर्चे का एक बड़ा मद है और यह सब्सिडी खर्च ब्याज अदायगी, रक्षा, पेंशन, कर्मचारियों के वेतन और अन्य प्रशासनिक व्यय के साथ मिलकर सरकार के कुल खर्च का दो तिहाई से उपर बैठता है। इन मदों पर सरकार के कर राजस्व का लगभग सारा हिस्सा खर्च हो जाता है और हम जिस विकास की बात करते हैं उसके लिए सरकार को कर्जा लेना पड़ता है। बहरहाल मोदी सरकार पर सभी तरह की सब्सिडी पर किये जाने वाले खर्चे को कैसे विवेकसंगत और सहायता-राहत-सशक्तिकरण मूलक बनाया जाए, इसकी भारी चुनौती है और इस मामले में अनाज सब्सिडी तो इसके गले की सबसे बड़ी हड्डी है। क्योंकि इस फ ूड सब्सिडी की वजह से भारत सरकार के सभी मंत्रालयों में रक्षा मंत्रालय के बाद सबसे बड़ा बजट खाद्य व उपभोक्ता मंत्रालय का है।