पेट्रोलियम संकट आर्थिक संकट को और गहराएगा

पेट्रोलियम संकट आर्थिक संकट को और गहराएगा


मनोहर मनोज


अभी साउदी अरब के तेल ठिकाने पर हुए ड्रोन हमले सेे भारत की चिंताएं काफी बढ गई हैं। इस हमले में साउदी अरब के तेल उत्पादन की मात्रा फिलवक्त केवल पचास फीसदी रह गई है जिसकी वजह से कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय दामों में पिछले पांच दिनों में लगातार वृद्धि हो रही है। अकेले सोमवार को ही कच्चे तेल के गलोबल मार्कर ब्रेन्ट की कीमतों में २० फीसदी तथा अमेरिकी मार्कर डब्लूटीआई की कीमतों में १६ फीसदी बढत हुई तथा कुल मिलाकर कच्चे तेल की औसत अंतरराष्ट्रीय कीमतों में १५ फीसदी की बढोत्तरी दर्ज हुई। परंतु आने वाले दिनों में इसमे काफी तेज बढोत्तरी की संभावना जताई जा रही है। गोल्डमैन सच के अनुमानों के मुताबिक कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतें अभी ७५ डालर प्रति बैरल तक जाएंगीं। भारतीय पेट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने हालांकि अभी दावा किया है कि भारत में तेल आयात की नौका खेपें बदस्तुर जारी हैं और तेल रिफायनिंग के काम का स्केल भी पूर्ववत जारी है। परंतु पिछले मंगलवार के दिन राजधानी दिल्ली में पेट्रोलियम की कीमतें चौदह पैसे प्रति लीटर तथा डीजल की पंद्रह पैसे प्रति लीटर बढ गईं जो पिछले ढाई महीने के दौरान एक दिन में हुई सबसे बड़ी बढोत्तरी है।


 गौरतलब है कि साउदी अरब के तेल ठिकाने पर हुई इस घटना को पहले दूर्घटना बताया गया परंतु बाद में पता चला कि यह ड्रोन का हमला था जिसे संभवत: इरान ने अंजाम दिया है। जाहिर है कि घटना का यह रूप और ज्यादा गंभीर है जिससे खाड़ी के इलाके में भविष्य में तनाव और अशांति की आशंका ज्यादा बलवती हो चली है। इससे भविष्य में पेट्रो अर्थव्यवस्था यानी आयल इकोनामी को काफ ी बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है। बताते चले कि हमला साउदी अरब पर हुआ परंतु इस तबाही की गूंज भारतीय अर्थव्यवस्था पर दरश हो रही है। भले साउदी अरब भारत का दूसरा सबसे बड़ा कच्चा तेल विक्रेता देश है और इरान सबसे बड़ा। परंतु इरान और बेनेज्युला पर प्रतिबंधों की वजह से साउदी अरब अभी भारत का सबसे महत्वपूर्ण तेल विक्रेता देश था। बताते चलें कि ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों की इसी साउदी अरब ने सबसे ज्यादा तरफदारी भी की थी। खाड़ी के इस सबसे महत्वपूर्ण देश साउदी अरब में यह घटना उस समय घटित हुई है जब भारतीय अर्थव्यवस्था के हालात ठीक नहीं चल रहे हैं। देश में साफ तौर पर आर्थिक मंदी की स्थिति झलक रही है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपने नौकरशाहों के साथ लगातार बैठकें कर तीन बड़ी घोषणाएं कर चुकी हैं। शुकर ये कि इस मंदी में अभी तक देश की मुद्रा स्फीति की स्थिति नियंत्रित थी। परंतु खाड़ी के मौजूदा संकट से पेट्रोलियम की बढने वाली कीमतें भारत की अर्थव्यवस्था क ो बिना प्रभावित किये रह ही नहीं सकती। बताते चलें भारत के ८३ प्रतिशत कच्चे तेल की जरूरत विदेशी आयात पर निर्भर है। यदि कच्चे तेल की कीमतें बढेंगी तो भारत में मुद्रा स्फीति में बढोत्तरी अवश्यभावी है। भारतीय अर्थव्यवस्था का इतिहास बताता है कि जब जब पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें बढ़ी हैं तब तब मुद्रा स्फीति सीधे तौर पर प्रभावित हुई है। परंतु विगत एक दशक के दौरान भारत में तेजी की अर्थव्यवस्था ने पेट्रोलियम पदार्थों की बढोत्तरी को झेल लिया था। परंतु मौजूदा समय में पांच फीसदी की विकास दर तथा साफ साफ दिख रही मंदी की स्थिति में पेट्रोलियम जनित मुद्रा स्फीति नीम पर करैले चढऩे की तरह साबित होगी। मंदी व उंची मुद्रा स्फीति दर का युज्म भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक खतरनाक युज्म होगा।


बताते चलें कि भारत की अर्थव्यवस्था एक तरफ पेट्रोलियम पदार्थों के आयात पर निर्भर है तो दूसरी तरफ यही पेट्रोलियम भारत की राजस्व उगाही का भी सबसे बड़ा स्रोत है। पेट्रोलियम उत्पादों पर लगे चार प्रमुख करों उत्पाद, सीमा शुल्क, वैट तथा प्रवेश शुल्क से केन्द्र व राज्य सरकारों को हर साल करीब तीन लाख करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त होता है। जीएसटी की कथित महान कर व्यवस्था में पेट्रोलियम उत्पादों को इसलिए शामिल  नहीं किया गया कि केन्द्र व राज्यों की आमदनी यह सबसे बड़ा स्रोत कहीं बेमानी ना हो जाए। सवाल ये है कि साउदी अरब के इस संकट से आने वाले दिनों में कच्चे तेल की कीमत यदि ज्यादा बढ़ती हंै तो ऐसे में केन्द्र सरकार लोगों की नाराजगी दूर करने के लिए उत्पाद व सीमा शुल्क में कमी लाने के लिए बाध्य होगी। अभी अभी पिछले बजट में पेट्रोल की कीमतों में ढाई रुपये प्रति र्लीटर तथा डीजल की कीमतों में एक रुपये प्रति लीटर बढोत्तरी की गई थी। आने वाली परिस्थिति में कच्चे तेल की कीमतों की वजह से यदि केन्द्र व राज्य सरकारें पेट्रोलियम पर आरोपित अपने करों में कमी करते हैं तो मौजूदा मंदी में सरकारों की आमदनी का यह बड़ा जरिया भी हल्का हो जाएगा। जाहिर है इससे सरकार को अपने विकास व रोजमर्रा के खर्चे के लिए हाथ बंद कर रखना होगा।


भारत सरकार के पेट्रोलियम मंत्री ने मौजूदा संकट के बरक् श एक महत्वपूर्ण घोषणा की है कि वह रूस से कच्चे तेल के आयात को आने वाले दिनों में बढायेंगे और भारत की खाड़ी के देशों पर आयात निर्भरता कम करेंगे। आर्कटिक क्षेत्र में स्थित रूसी पेट्रोलियम कंपनी वोस्टक और इस्टर्न कलस्टर आयल प्रोजेक्टस में भारत अपनी उत्पादन हिस्सेदारी बढाने के लिए समझौते की दिशा में कार्यरत है। भारत यहां से एक नये समुद्री रूट के जरिये कच्चा तेल आयात करने की सोच रहा है। इस बाबत दुनिया की सबसे बड़ी सूचीबद्ध पेट्रोलियम उत्पादक  कंपनी रोसने$फट और भारत की पेट्रोलियम कंपनियों इंडियन आयल, ओएनजीसी विदेश तथा भारत पेट्रोलियम की सहयोगी कंपनी बीपीआर के कन्सोरिटम के बीच अभी अभी एक समझौता हुआ है। इसके तहत भारत के कच्चे तेल के आयात का भौगोलिक ठिकाना अब पश्चिम के बजाए उत्तर की ओर रूख करने वाला है।


कुल मिलाकर देखा जाए तो भारत के लिए पेट्रोलियम दूर की ही कौड़ी रहा है। भारत की घरेलू तेल उत्खनन कंपनियों तथा एनइएलपी के तहत करीब दस चरणों में हुए सैकड़ों विदेशी निवेश करार के बावजूद देश में घरेलू हाइड्रोकार्बन का उत्पादन जरूरतों के मुकाबले आख मिचौनी ही खेलता रहा है। ये स्थितियां भारत की उर्जा सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती तो है हीं साथ साथ भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिरता और विकास के सामने की भी एक बड़ी बाधा। इसके अलावा भारतीय मुद्रा रुपये का अंतरराष्ट्रीय मुद्रा अमेरिकी डालर के मुकाबले गिरावट की भी यही सबसे बड़ी वजह रही। नरेन्द्र मोदी नीत एनडीए सरकार के लिए पिछला पांच साल इस मायने में बेहद खुशगवार रहा कि इस दौरान कच्चे तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमते तीस डालर से ८० डालर प्रति बैरल के बीच हीं झूलती रही। जबकि यूपीए २ के कार्यकाल में कच्चे तेल की कीमतें सौ डालर से उपर की ओर गईं। यही वजह है कि यूपीए में मुद्रा स्फीति की दरों ने भी दहाई अंक तक को छुआ। परंतु आज स्थिति अलग है क्योंकि मंदी का आलम है और ऐसे में उंची मुद्रा स्फीति की दर झेलने में देश सक्षम नहीं है।