आप पार्टी  पर एक नज़र 

आप पार्टी  पर एक नज़र 


आप पार्टी की बौद्धिक क्रांतिकारिता का फरेबी रंग तो हम जैसे लोगो को पहले से पता था लेकिन इन पर जनादेश की मुहर लगनी बाकी थी। इस पार्टी का नेता दिल्ली के विधानभवन से सीधे सीधे संसद भवन कूच करने के लिए अपनी हरकतों के लगातार कुलांचे भर रहा था। और इसके लिए इसने मोदी के खिलाफ हर अवसर पर कुछ भी बोलने का अपना बयान ब्रांड बना लिया था। मीडिया में आजकल वैसे ही उटपुटांग बातो को ज्यादा कवरेज मिलती है। और उस पर इस दल द्वारा अपने सरकार की हर छोटी बड़ी गतिविधि को विज्ञापन और प्रोपेगंडा के रूप में परोसे जाने को लेकर दिल्ली सरकार का अरबो रुपये स्वाहा किया जा रहा था. जबकि जरूरी राष्ट्रीय पर्व और विकास संचार पर गुडविल विज्ञापनों को धता बताई जा रही थी। वह पार्टी जो फ़रवरी 2015 में अपने शपथ ग्रहण के दौरान इस बात की भी शपथ ली थी की वे दिल्ली के बाहर अब अपनी कोई राजनितिक गतिविधि नहीं करेंगे। परंतु इस ठग ने पंजाब, गोवा , गुजरात जैसे दिल्ली के बराबर आर्थिक आमदनी वाले राज्यो में वैसे ही प्रोपेगंडा के जरिये अपने राजनितिक विस्तार की योजना बनाई थी। इस मनसूबे पर तो खैर अब पूरी तरह पानी फिर गया है। अब तो यह पार्टी दिल्ली की अपनी जमीन बचा ने को लेकर एक तरह से पेनिक मोड में आ चुकी है। एक एक दिन में बड़े बड़े अख़बारो के चार चार पन्नो में अपने थोबड़े दिखाने वाले केजरी अब पुनः धरना कुमार बनने की तैयारी में आ गए है। हर एक विधायक को दिल्ली नगर निगम चुनाव के लिए हर जनता से दो दो बार संपर्क करने का आदेश दिया गया है। केजरी के लिए लगता है संसद भवन का ख्वाब अब नगरपालिका भवन को बचाये जाने पर टिक गया है। पर वह ये ना भूले की उनके दल के सबसे क्रीमी लोग जिन्होंने स्वराज इंडिया बनायीं है वे लोग इस नगरनिगम चुनाव में उन्हें पटकनी देने के लिए कमर कस कर मैदान में आ चुके है। --
पुनश्च - और तो और जो व्यक्ति अपने आंदोलन के दौरान चुनाव आयोग और सीएजी जैसी संस्थाओ की गतिविधियों और रिपोर्टों के हवाले से व्यस्था और सरकारों पर हमले बोलता था वह सरकार में आकर इन्ही दोनों संस्थाओ पर अपने स्वार्थ में हमला करने में थोडा भी गुरेज नहीं किया , उसके बारे में कुछ और कहने की जरूरत ही नहीं।


आप पार्टी की मौजूदा स्थिति कम से कम मेरे लिए लेशमात्र भी आश्चर्यजनक या हैरतनाक घटना नहीं है , मै केज़री की मनःस्थिति से अन्ना आंदोलन के दौरान से ही बेहद अच्छी तरह वाकिफ था इसीलिए मैंने इन पर अनेको पोस्ट किये जो एक एक कर अभी अक्षरशः सही साबित हो रही है। मुझे हैरत सिर्फ इस बात के लिए हुई थी की योगेन्द्र , प्रशांत और आनंद कुमार जैसों ने इतने दिनों तक केज़री की अधीनता कैसे स्वीकार की थी , वह तो शुरू से ही केवल अपने आप को आगे ले जाने के लिए ही सारे कार्य कर रहा था। लगता है योगेन्द्र और आनंद कुमार अपने राजनितिक करियर नहीं बन पाने की हताशा में मज़बूर होकर ऐसा कार्य करने को मज़बूर हुए थे। मै फेसबुक मित्रो किए लिए वे पोस्ट पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ
Economy India
December 11, 2012 ·
i am surprised to see the love and hate relationship between Anna Hazare and Arvind Kezriwal. Ealier these two, Means the Saint and strategic sensationalizer of corruption kind of issue ,associate with one another to get mutual benefit. Now their objective collided and they separated with each other but they still require each other, only because Anna is seeking a follower party who can bear his photo and AK is willing Anna only because of his mass appeal personality. but the fact is Anna is saint, but does not have broad knowledge and academic excellence on country's system and set up and on the other side Arvind is ambitious and he is seeking publicity through his bureaucratic mind, but he is lacking vision, how to remove corruption from various walks of life. So in this context the real issue of corruption has gone in the backburner and these two want to catch limelight, so sometimes they praise each other and sometime they criticize each other


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December 24, 2013 · New Delhi ·
यह तो हमेशा रहा है कि जब भी कोई उगता सूरज दिखा या किसी का किसी भी तरह उभार हुआ तो ना केवल जनता बल्कि मीडिया और हमारे विश्लेषक भी बिना उसका दीर्घकालीन अवलोकन किये उसकी खूब जयकार करते रहे है \ ऐसे में आप पार्टी का भी जो हर जगह जयघोष चल रहा है वह कोई असामान्य परिघटना नहीं है \ हालाकि इस पार्टी की झपट्टामार शैली और आम आदमी के प्रति कई प्रतीकात्मक पोस्चरिंग के वावजूद इसकी राजनितिक पहल स्वागत योग्य है क्योकि इस पार्टी ने उन सभी पारमपरिक राजनीतिक दलो की लीक पर चलने वाली राजनीतिक शैली का पर्दाफाश किया है और उन्हें यह सोचने के किया है कि राजनीति में पढ़े लिखे बौद्धिक परिवर्तनकारी लोगो के लिए भी स्थान है / मै आप पार्टी में अभी भी कई आइडोलॉजिकल खामिया देखता हू साथ ही उनमे व्यस्था परिवर्तन को लेकर व्यापक और एक परिपक्व एजेंडा का आभाव देखता हु / परन्तु इन्होने अपनी तवरित और कठोर मिहनत से जिस तरह से एक अल्टरनेटिव पॉलिटिक्स का संगठन खडा किया उसकी जितनी भी तारीफ क़ी जाये वह कम है / क्योकि बदलाव के लिए कितना भी क्रन्तिकारी बौद्धिक पहल आज तक किया गया वह अभी तक जमीं पर उतरना बेहद दुरूह रहा है / मै स्वंय यह पहल पिछले लोकसभा चुनाव में बालमीकीनगर में कर विफल हो चूका हु / परन्तु आप पार्टी जल्दी में सफलता प्राप्त भले कर चुकी हो परन्तु उन्हें व्यक्तियो के बजाय वयस्था पर चोट करनी चाहिए


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August 29, 2014 · New Delhi ·
आप पार्टी का कन्वेंशनल मीडिया और सोशल मीडिया दोनों में अब उतना नोटिस नहीं लिया जा रहा है / जब यह पार्टी अस्तित्व में आई और बहुत से अपरिपक्व परिवर्तनकारी लोग इसके बेहद दिवाने बने हुए थे, उस दौरान भी में इनका कटु आलोचक था और तबसे लेकर लोकसभा चुनाव तक मैंने अपने ब्लॉग कॉलम से लेकर fb पोस्ट तक में इनके बारे में शायद सबसे ज्यादा लिखे/ कई लोग इस आलोचना पर मुझे मोदी का समर्थक समझ जाते पर हकीकत में मोदी के ऐठन और अति महत्वकांछा का उतना ही विरोधी / टीवी चैनेलो पर इनके खिलाफ मैंने दर्जनो कार्यक्रम में तगड़ा प्रतिवाद किया था / आप जैसे पार्टी के गठन के मूल सिधान्तो का मैं बहुत बड़ा पैरोकार हु / परन्तु आप के प्रति मेरा बुरा रवैया इनके चौकड़ी नेताओ के बौद्धिक सैद्धांतिक और विज़न के दिवालियेपन से उपजा जो परिवर्तनकारियों की पृष्ठभूमि होने की वजह से इनसे ज्यादा अपेक्षित थी/ परन्तु ये लोग कन्वेंशनल राजनीती करने वाले लोगो से भी ज्यादा पैतरेबाज और खिलाडी साबित हुए,ऐसे में इनके प्रति रोष उभरना स्वाभाविक था/ भ्रस्टाचार की रोकथाम को लेकर भी इनके पास मौलिक सोच और दीर्घकालीन एजेंडा नहीं है/ इन्होने ये माना सड़क एक्टिविज्म ही बदलाव का सबसे बड़ा सूचक और जनसमर्थन ही हमारी कसौटी है / मेरी समझ से वैचारिक परिवर्तन सबसे बड़ा परिवर्तन है और आदर्शवाद को जनसमर्थन मिले या नहीं, उस पर कभी समझौता नहीं होना चाहिए / लोकप्रियता ऊपर जाती है तो नीचे भी जाती है मोदी को बहुत बड़ा समर्थन मिला पर इससे मै मोदी का सम्मान करना लगा हु ऐसा नहीं है / यूपीए की पहचान की राजनीती, लोकलुभावन योजनाओ तथा 1960 देश में चले आ रहे भ्रस्टाचार पर इस पार्टी द्वारा कोई मौलिक पहल नहीं करना हमेशा निंदनीय रही है परन्तु मई अभी भी मानता हु की मोदी जल्दबाजी में बीजेपी के पीएम बने है / मोदी के अंध समर्थक परेशान ना हो मोदी ने अबतक अपना काम ठीक और अपेक्षित तरीके से किया है / मेरी निष्पक्ष दृष्टि तो यही कहती है