कांग्रेस पर मै यह कहना चाहूंगा 


कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह रही है की उन्होंने आज़ादी के समय की विशाल समागम वाली कांग्रेस को अंततः नेहरू गांधी परिवार की लिमिटेड कमपनी में तब्दील कर दिया। दूसरा उनमे सेक्युलरिज्म को लेकर जाने अनजाने पनपी घोर कंफ्युजन की स्थिति रही । कांग्रेस यह भूल जाती है वह सेकुलरिज्म की चैंपियन होने के बावजूद देश के सांप्रदायिक विभाजन को नहीं रोक पायी। दूसरा विभाजन के उपरांत भी उसकी गलती ये रही की सेक्युलरिज्म के सच्चे सिद्धान्तों के साथ खिलवाड़ कर मुस्लिम परस्ती को संविधान के साथ टैग करने या उनके दबाव में टैग करने के लिए विवश हुई । दूसरी तरफ संविधान के नीति निर्देशक सिद्धान्तो के विपरीत कॉमन सिविल कोड को उनके द्वारा लागू नहीं कर पा ना। तीसरा अपने मुस्लिम वोट बैंक की खातिर गैर प्रगतिशील मुस्लिम्परस्ती को लगातार बढ़ावा देना इनमे शामिल रहा । चौथा एक ऐसी राजनितिक संस्कृति कांग्रेस ने उत्पन्न को, जो राजखजाने को खाली कर आर्थिक पोपुलिज म को बढ़ावा देने वाली थी जिससे देश को आर्थिक सुदृढ़ता प्राप्त करने कठिनाई हुई । इन सभी समीकरनो के साथ कांग्रेस इस देश में पचास साल से ऊपर इसलिए राज कर गई क्योंकि तबतक ये चीजे लोगो के लिए नागवार नहीं गुजरी थी । अब तो पब्लिक वंशवाद और तुष्टिकरण को एक्सेप्ट नहीं कर पा रही है।
मेरा मानना है की कांग्रेस में मौजूदा गिरावट के लिए राहुल को दोष देना उचित नहीं है। बल्कि पब्लिक अब पुराने दौर से अलग हो चुकी है। राहुल हाल हाल तक एक युवराज मोड में काम करने के बजाये किसानों युवाओ और मजदूरों के बीच एक सौम्य एक्टिविस्ट के रूप में काम कर रहे थे। अब जबकि राहुल को पार्टी की पूरी कमान मिल गयी है तो वह अपने आप पर एक दबाव में ज्यादा एग्रेसिव होकर अपने पथ से भटक जा रहे है। कई बार तो वह अरविन्द केजरी की नक़ल करते लगते है। कांग्रेस पार्टी में खासकर जब तक इसकी कमान नेहरू गांधी परिवार में रही तब तक इसे देश में बहुदलीय लोकतंत्र का मजबूत होना कभी भी अच्छा नहीं लगा। कांग्रेस पार्टी विपक्ष पर हर तरह से साम दाम दंड अपनाकर नकेल कसती रही।
गौर करने लायक ये है की आज़ादी के समय कांग्रेस को अपने बराबर किसी प्रतियोगी राजनितिक दल से मुकाबला नहीं करना पड़ा और जो जनसंघ भाजपा देशव्यापी विकल्प बन रही थी उसपर वह लगातार हमलावर बनी रही। सवाल ये है की कांग्रेस पार्टी जिस पर देश के विभाजन की तोहमत लगी वह किस मुह से बीजेपी के बहाने देश को विभाजित हो जा ने कर डर लोगो को दिखाती रहती है। भाई जिन यूपी और उत्तर भारत के मुसलमानों ने मुस्लिम लीग को वोट देकर पाकिस्तान बनाने का मार्ग प्रशस्त किया , उन्ही पर कांग्रेस ने तुष्टिकरण का पाशा फेंका। चिदंबरम और मणि गलत नहीं कह रहे की कांग्रेस की राजनीती भारत के हर राज्य के लिए अलग रही है , इसके तहत वह कही राष्ट्रवाद का तो कही अलगावाद, कही धर्म का तो कही जाती का कोरस गाती रही है।
आज के दौर में मेरी कांग्रेस को सलाह यही होगी की वह मुस्लिम मुस्लिम करना बंद कर दे। बीजेपी का हिंदूवाद अपने अपने आप मुह के बल गिरेगा और बीजेपी को वह केवल गवर्नेंस के एजेंडे पर घेरने का प्रयास करें। इ स स्थिति में कांग्रेस कुछ सालो तक भ्रष्टाचार के मुद्दे पर जरूर बचाव की मुद्रा में आएगी पर आने वाले दिनों में भाजपा शासित केंद्र और राज्यो के कई मुद्दे जो व्यस्थाजनित है , उस पर घेराबंदी का काम वह जरूर कर सकती है। वैसे मोदी एक अच्छे और मजबूत प्रशासक है पर व्यस्था की तमाम विरूपताएँ अभी भी इस देश में बदस्तूर मौजूद है। अगर ऐसा होगा तो देश के मुसलमानों का जो पहले इंसान है , उनका भी भला होगा।