समाजवादी पार्टी पर मै यह कहना चाहूंगा 

समाजवादी पार्टी पर मै यह कहना चाहूंगा
आज सपा विधायक दल की बैठक में नवनिर्वाचित विधायको को जिस तरह से पार्टी के पितृपुरुष मुलायम सिंह से दूर रहने के निर्देश दिए गए उससे तो बात पूरी तरह से साफ़ हो जानी चाहिए की सपा में मचा घमासान दिखाउ नहीं बल्कि सपा के कर्णधार परिवार में भारी फूट का ही विस्फोट था। मामला दरअसल मुलायम की पत्नी और उनके सौतेले पुत्र के बीच का था जिसके निमित शिवपाल यादव बने हुए थे। दरअसल मुलायम का पूरा राजनितिक इतिहास उनके अपने उसूल और जिद के आसपास मंडराता रहा है जिसमे उनकी संगठन की जमीनी समझ और राजनीती की व्यव्यहारिकता का एक समन्वय भी हमेशा दर्शित होता रहा है। दूसरी तरफ उनके पुत्र अखिलेश अपने कार्यकाल में कई मामलो में आदर्शवाद और आधुनिकतावाद का परिचय देने मसलन मसलन पार्टी में अंसारी बंधुओ को शामिल नहीं करने, गलत तत्वों से समझौता नहीं करने का रुख जरूर दिखाया , पर परिवारवाद की कोख से राजनितिक जनम लेने वाले अखिलेश अपने पिता को ही पदच्युत करने में अभूतपूर्व मुगलई व्यहारिकता प्रदर्शित कर गए। अगर परिवार के निजी कलह से अलग होकर अखिलेश का मूल्यांकन करे तो इसमें कोई शक नहीं की वह व्यहार के मामले में अपने पिता की तरह सरल और अहंकार हीन है। कई जगह सेलेक्टिव रूप से विजनरी भी दिखाई देते है। पर चुकी उन्हें इतने बड़े प्रदेश की कुर्सी पोलिटिकल डायनेस्टी से मिली है , अतः उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए की इतनी उम्र में यूपी के मुख्यमंत्री पांच साल रहकर यदि हारे भी है तो भी उनके पास बहुत उम्र बाकी है फिर संघर्ष करने के लिए। यह सही है की अखिलेश के लिए शुरू के तीन वर्ष ठोस निर्णय लेने मामले में बेहद रुक़ावटपूर्ण रहे , पर जब वह अपने पर आये, तबतक काफी देर हो गयी थी। और केवल आगरा एक्सप्रेस वे तथा लखनऊ मेट्रो के मोंटाज दिखाकर इतने बड़े राज्य का चुनाव नहीं जीत सकते थे। अखिलेश की यदि कुछ अच्छाईया स्पष्ट रेखांकित होती भी है , फिर भी उन्हें अपने पिता के साथ मतभेदों का स्थायी समाधान ढूँढना ही पड़ेगा क्योकि उनकी सारी राजनितिक आधारशिला उनके पिता के 40 साल के जमीनी संघर्ष पर ही तैयार हुई है। यदि अखिलेश बिलकुल अपने हिसाब से अपनी आगे की राजनितिक जमीं तैयार करते भी है तो पहले उन्हें अपने मुस्लिम यादव वोट बैंक की पार्टी पर पड़ने वाली सोशियोलॉजिकल औरा का एक बड़ा समावेशी विकल्प तैयार करना पड़ेगा। पुलिस फाॅर्स के यादवीकरण को खंडित करना पड़ेगा। तभी उन्हें नयी पॉलिटिक्स के अभिकर्ता के रूप में पहचान बन पायेगी। और इस कार्य में अखिलेश को कम से कम अगले दस साल तक राजनीतिक परीक्षा देनी पड़ेगी।