तब्लीगी बनाम आर एस एस का विमर्श

तब्लीगी बनाम आर एस एस का विमर्श
आर एस एस से तब्लीगी की तुलना करना किसी भी दृष्टि से मेल नहीं खाता। यह तुलना जबरदस्ती की वामी बौद्धिकता है जो मुस्लिम जहालत के इतने बड़े साबुत के सामने अपने को शर्मिंदा महसूस कर रही थी और अब उसे कवर अप करने के लिए आर एस एस से जोड़ रही है। आर एस एस थोड़ा नज़दीक है तो जमाते इस्लामी जैसे मुस्लिम संगठन के, परन्तु फिर भी आर एस एस के नाम में हिन्दू शब्द नहीं है और इसके नाम में राष्ट्र शब्द जुड़ा है। यह अलग है की आर एस एस के लिए राष्ट्रवाद का आधार हिन्दू सनातन है पर यह संगठन हिन्दू पोंगापंथी को और इसके प्राचीन कर्मकांडो को प्रचारित नहीं करता और यही वजह है हिन्दुओ में अन्धविश्वास और कई कुरीतयों की तेजी से समाप्ति हो रही है। आर एस एस निसंदेह हज़ारो जातियों और उप जातियों में बंटे हिन्दुओ को संगठित के लिए इसके धार्मिक प्रतिमानों को जीवित करने की रणनीति पर काम करता है जिसके लिए वह राजनीती में भी बेहद सक्रिय रहता है और कही ना कही तमाम पहचानो से भरीभारतीय प्रजातंत्र में अपने वोट बैंक की हिस्सेदारी हासिल करने में भी उसे काफी सहूलियत हुई है। आर एस एस की आप इस बात के लिए आलोचना जरूर कर सकते है की वह हिन्दुओ की जाती व्यवस्था और वार्ना व्यवस्था समाप्त करने में उतनी बड़ी सक्रियता नहीं दिखा पायी जितना वह राजनितिक और सामाजिक रूप से संगठित करने में और मुस्लिम विरोध करने में दिखायी है । परन्तु तब्लीगी जमात के जरिये कट्टर वहाबी मुसलमान की कई सारी फ़ण्डामेंटलिस्म को जगाया जाता है लेकिन इनके साथ अच्छी बात ये है की इस जमात को राजनीती के प्लेटफार्म से तौबा है। इस दृष्टि से यह उन अन्य मुस्लिम समुदाय जो मस्जिदों से राजनीती करने के चैंपियन है और जिनके लिए इस्लाम और राजनीती में कोई फर्क नहीं है उनसे यह अलग है।



आर आर एस को आप मुस्लिमो के गैर तब्लीगी संस्करण के करीब जरूर मान सकते है। पर आपको यह भी जाना चाहिए कई मुस्लिम बुद्धिजीवी अपने शर्म को ढकने के लिए आर एस एस का दुनिया के कुख्यात मुस्लिम आतंकी संगठनों अल कायदा , isis और लश्कर तक से तुलना कर डालते है। यह दुनिया का सबसे बड़ा झूठ है। क्योंकि आर एस एस ना तो घोषित रूप से और ना ही अघोषित रूप से कोई आतंकी कैंप चलाती है । हाँ इनके कुछ कार्यकार्ता हताशा में इस्लामिक आतंक के प्रत्युत्तर में प्रति आतंक करने में जरूर सक्रिय रहे , परन्तु इनकी संख्या चंद थी और इसे इस संगठन ने कभी भी अपना नहीं माना। आर आर एस को गलत कह ले पर इस तथ्य को जरूर मानिए की इस देश का साम्प्रदायिक विभाजन नहीं होता तो आर आर एस की हिन्दुओ को संगठित करने की अपील और उनके अन्य कामो का ज्यादा असर नहीं होता। आज़ादी आंदोलन के दौरान देश के किसी भी हिंदूवादी संगठनों की राजनितिक ताकत धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस के सामने नगण्य थी और यह धर्मनिरपेक्षकांग्रेस मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक टू नेशन थ्योरी को रोकने में विफल रही और यही बात आर आर एस की जर्नी को आगे बढ़ाने में सबसे ज्यादा मददगार साबित हुई।